21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक★ शौर्य सप्ताह ★
नेक सिंह ठाकुर (ट्राइबल टूडे न्यूज)चंबा।
सन् 1704 ~ पूस का 13वाँ दिन….
नवाब वजीर खाँ ने फिर पूछा ~
बोलो ! इस्लाम कबूल करते हो ?
6 साल के छोटे साहिबजादे
फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा ~
अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर
कभी नहीं मरेंगे न ?
वजीर खाँ अवाक रह गया….
उसके मुँह से जवाब न फूटा.
तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि
जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है ,
तो अपने धर्म में ही
अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें ?
दोनों साहिबजादों को ज़िंदा
दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ..
दीवार चिनी जाने लगी.
जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की
गर्दन तक आ गयी तो
8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा…..
फ़तेह ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है ?
जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि
आया मैं पहले था पर कौम के लिए
शहीद तू पहले हो रहा है.
उसी रात माता गूजरी ने भी
ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए.
गुरु साहब का पूरा परिवार
6 पूस से 13 पूस,
इस एक सप्ताह में
कौम के लिए , धर्म के लिए
राष्ट्र के लिए शहीद हो गया.
दोनों बड़े साहिबजादों,
अजीत सिंह और जुझार सिंह जी का
◆ शहीदी दिवस. ●
और स्पष्ट कर दूँ ~
21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक
इन्हीं 7 दिनों में गुरु गोविंद सिंह जी का
पूरा परिवार शहीद हो गया था.
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पहले पंजाब में इस हफ्ते सब लोग
ज़मीन पर सोते थे, क्योंकि
माता गूजरी ने 25 दिसम्बर की वो रात
दोनों छोटे साहिबजादों के साथ
नवाब वजीर ख़ाँ की गिरफ्त में
सरहिन्द के किले में
ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी, और
26 दिसम्बर को दोनो बच्चे
शहीद हो गये थे.
27 तारीख को माता ने भी
अपने प्राण त्याग दिए थे.
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यह सप्ताह भारत के इतिहास में
‘शोक सप्ताह’ होता है,
शौर्य का सप्ताह होता है.
लेकिन, अंग्रेजों की देखा-देखी
पगलाए हुए हम भारतीयों ने
गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को
सिर्फ 300 साल में भुला दिया.
ये बड़े शर्म की बात है कि हमने
अपने गौरवशाली इतिहास को भुला दिया,
और यही मूल कारण है कि हम
ग़ुलाम बने.
कितनी जल्दी भुला दिया हमने ....
इस शहादत को ?
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आइए, उन सभी ज्ञात-अज्ञात
महावीर-बलिदानियों को याद करें ,
जिनके कारण आज सनातन संस्कृति
बची हुई है.