दैवव्यपाश्रय का ज्ञान जनकल्याण के लिए है, व्यापार को नहीं
संदीप भारद्वाज ट्राइबल टुडे
दैवव्यपाश्रय के बारे में या तो लोग जानते नहीं हैं और जो जानते हैं, वे इसे समझ नहीं पाते हैं, क्योंकि यह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है। यह ज्ञान सबसे पहले मां दुर्गा ने भगवान शिव को दिया, भगवान शिव ने महाब्रह्मऋषियों को दिया और महाब्रह्मऋषियों से फिर अन्य ऋषियों तथा चरक और सुश्रुत आदि को प्राप्त हुआ। सुश्रुत दुनिया के सबसे बड़े सर्जन हैं, जिसने 1100 प्रकार की सर्जरी का आविष्कार किया है और दुनिया के सभी डाक्टर उन्हें अपना गुरु मानते हैं। सभी ने सर्जरी उनसे ही सीखी है। आधुनिक विज्ञान केवल सामयिक तौर पर ठीक कर देता है, लेकिन जड़ से बीमारी खत्म नहीं होती है। अगर एक रोग ठीक होता है, तो उसके रिएक्शन में दूसरा रोग भी शुरू हो जाता है। इस विधि को पूरे विश्व में पश्चिम के विज्ञानियों, धर्मगुरुओं, विद्वानों व बुद्धिजीवियों ने भी मान्यता प्रदान कर दी है। भाई-बहनों के यूटीआई जैसे रोग इसी से समाप्त होते हैं और आयुर्वेद सभी रोगों से निवारण करने में सक्षम हैं। ये उद्गार महाब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने रविवार को बस्सी पैलेस बरु में आयोजित प्रभु कृपा दुख निवारण समागम में श्रद्धालुओं से खचाखच भरे पंडाल में व्यक्त किए। महाब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने अवधान के माध्यम से श्रद्धालुओं को तत्क्षण दुख निवारण की कृपा प्रदान की। समागम में श्रद्धालुओं के अनुभव सुनकर वहां उपस्थित डाक्टर, वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी हैरान रह गए।
समागम में सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों, धार्मिक संस्थाओं के विद्वानों, प्रशासनिक अधिकारियों व राजनीतिक क्षेत्र से संबंधित गणमान्य लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर प्रभु कृपा ग्रहण की। समागम में आए श्रद्धालुओं के लिए अनवरत रूप से लंगर चलता रहा। महाब्रह्मर्षि जी ने कहा कि दैवव्यपाश्रय का ज्ञान मां दुर्गा ने महाब्रह्मर्षियों को दिया है। यह ज्ञान जनकल्याण के लिए है, व्यापार के लिए नहीं है, यह किसी अन्य दुरुपयोग के लिए नहीं है। इसलिए मां दुर्गा ने ऐसा किया था। यह एक दिव्य अलौकिक विज्ञान है। जब वह विदेश में जनकल्याण यात्राओं पर गए, तो वहां के डाक्टर कहने लगे कि ये असाध्य रोग कैसे खत्म होंगे। उन्होंने कहा कि दैवव्यपाश्रय से हो जाएंगे। वे बोले हम नहीं मानते, मैंने उन्हें दिव्य औषधि मिरेकल वी वाश दिया और उसके प्रयोग वे कुछ मिनट में ही रोगों से मुक्त हो गए। इस औषधि का मूलाधार पर प्रयोग करने से तुरंत ही रोग समाप्त हो जाते हैं। पश्चिमी देशों के समागमों में इस औषधि का प्रयोग करने के बाद श्रद्धालु बहनों और भाइयों ने अपने अनुभव भी सुनाए। महाब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने कहा कि मंत्र ही वास्तविक विज्ञान है। आधुनिक कहे जाने वाला विज्ञान ज्ञान है।